पुराने वक्त में ये हादसा कई बार होता था
अंधेरी रात में भी चाँद का दीदार होता था
तुम्हारे दूर जाने ने बदल कर 'बॉर' कर डाला
तुम्हारे साथ रहते जो कभी 'घर-बार' होता था
उसी के वास्ते सब हो रहा अब इस जमाने में
हमारे वास्ते जो देश का बाजार होता था
कहीं खबरें भी गुम मिल जायेंगीं इन इश्तहारों में
कभी जिनके लिए मशहूर ये अखबार होता था
निकल कर आ रहे हैं आदमी सब एक साँचे में
कभी हर एक का अपना अलग आकार होता था
4 comments:
कहीं खबरें भी गुम मिल जायेंगीं इन इश्तहारों में
कभी जिनके लिए मशहूर ये अखबार होता था
निकल कर आ रहे हैं आदमी सब एक साँचे में
कभी हर एक का अपना अलग आकार होता था
waah kya baat hai bahut sahi sunder.
कहीं खबरें भी गुम मिल जायेंगीं इन इश्तहारों में
कभी जिनके लिए मशहूर ये अखबार होता था
निकल कर आ रहे हैं आदमी सब एक साँचे में
कभी हर एक का अपना अलग आकार होता था
बहुत खूब कहा है आपने। सुन्दर भाव। लेकिन आपने इसे गजलनुम क्यों कहा? गजल कहने में भी हर्ज तो नहीं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahut hi gaharaee hai aapki kawita ke panktiyon me .....bahut hi sundar
गुजरे दोर की बात चली हैं तो , तू भी मान ले जैन
तुझे भी किसी अपने का इन्तजार होता था
"दिल से लिखा हैं आपने दिल को अछा लगा
कही न कही सबकी जिन्दगी से जुड़ा लगा
माफ़ करना जैन जी , अभी बच्चा हूँ
गर लिखा अश्यार आपको बुरा लगा "
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