Tuesday, July 21, 2009

दुष्यंत की ग़ज़ल की पैरोडी

(मूल गजल का मतला था- मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे
मेंरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आयेंगे

मिला निमंत्रण सम्मेलन का गीत, सुनाने आयेंगे
गीतों से ज्यादा अपना पेमेंट पकाने आयेंगे
बड़ बड़े कवि ले आयेंगे प्यारी प्यारी शिष्याएं
निज बीबी से दूर रंगरेलियां मनाने आयेंगे
नामों से बेढंगे, रंगबिरंगे, हास्यरसी कविवर
चोरी किये हुये फूहड़ चुटकले सुनाने आयेंगे
उनको क्या मालूम विरूपित इस कविता पर क्या गुजरी
वे आये तो यहाँ सिर्फ छुिट्ट़यां मनाने आयेंगेे

3 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

नश्तर ऐसे ही लगाते रहिए। हाथ डॉक्टर का रखिए।

निर्मला कपिला said...

बहुत तीखे नश्तर हैं आभार्

Udan Tashtari said...

वीरेंद्र जैन के नश्तर-वाकई पैने हैं.