Wednesday, September 2, 2009

दुष्यंत की ग़ज़ल की पैरोडी -2

दुष्यंत की ग़ज़ल की पैरोडी -२
( मूल मक्ता -ये जुबां हमसे सीं नहीं जाती
जिन्दगी है कि जी नहीं जाती)
नौकरी हमसे की नहीं जाती
क्योंकि चमचागिरी नहीं आती
अफसरों के विशाल बंगलों पर
नाक हमसे घिसी नहीं जाती
राजाशाही चली गयी होगी
देश से अफसरी नहीं जाती
उनके कुत्ते भी बोलते इंग्लिश
हमको घिस्सी पिटी नहीं आती

1 comment:

अपूर्व said...

नौकरशाही पर एक तीखा और चुटीला व्यंग्य..बेहतरीन!