Thursday, February 25, 2010

व्य्ंग्यजल-न कहीं है उमंग होली में

व्यंगजल
होली में
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यहाँ वहाँ न कहीं है उमंग होली में
सभी लगाये हैं बाहर से रंग होली में

उन्हीं के दिल में एक वायलिन सी बजती है
बजा रहे हैं जो बैठे मृदंग होली में

मिले न मन, न मिली आत्मा, न इच्छाएं
शारीर नाच रहे संग-संग होली में

रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में

नहीं तलाशाता कोई भी दर्दे दिल की दवा
भुलाये जाते हैं खा खा के भंग होली में


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

6 comments:

Anonymous said...

"मिले न मन, न मिली आत्मा, न इच्छाएं
शारीर नाच रहे संग-संग होली में"
आज की होली को आयना दिखाती सुंदर रचना

प्रदीप कांत said...

रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में

bahut badhiyaa

डा श्याम गुप्त said...

अच्छे नश्तर हैं वीरेन्द्र जी,
----पिचकारी के तीर पढिये ---http://shyamthot.blogspot.com पर ।

चिराग जैन CHIRAG JAIN said...

नमस्कार
गत वर्ष आप मेरे ब्लॉग पर आए थे तथा "महावीर भगवान" पर रचित कविता की अनुशंसा की थी।
आपके स्नेह और शुभकामनाओं से मैंने अपने ब्लॉग को वेबसाइट में रूपांतरित कर दिया है।
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www.kavyanchal.com

kunwarji's said...

maja aa gya ji.....

Kamlesh Jha said...

रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में
ek saal pahle likhi gazel aaj aur jayada mauju hai. ashaar man ko chhone wale hai.