व्यंगजल
होली में
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यहाँ वहाँ न कहीं है उमंग होली में
सभी लगाये हैं बाहर से रंग होली में
उन्हीं के दिल में एक वायलिन सी बजती है
बजा रहे हैं जो बैठे मृदंग होली में
मिले न मन, न मिली आत्मा, न इच्छाएं
शारीर नाच रहे संग-संग होली में
रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में
नहीं तलाशाता कोई भी दर्दे दिल की दवा
भुलाये जाते हैं खा खा के भंग होली में
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
6 comments:
"मिले न मन, न मिली आत्मा, न इच्छाएं
शारीर नाच रहे संग-संग होली में"
आज की होली को आयना दिखाती सुंदर रचना
रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में
bahut badhiyaa
अच्छे नश्तर हैं वीरेन्द्र जी,
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नमस्कार
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maja aa gya ji.....
रहा जो ईद में, दीवाली में, दशहरा में
हमार हाथ यथावत है तंग होली में
ek saal pahle likhi gazel aaj aur jayada mauju hai. ashaar man ko chhone wale hai.
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