hindi vyangy kavittaon ka mohalla हिंदी व्यंग्य कविताओं का मोहल्ला
Monday, April 6, 2009
नया घर
नया घर
कटे जंगल से हुई खाली जगह पर
गगनचुम्बी इमारत उग गई है
उसीकी शाख पर लटका हुआ हूँ
परिन्दे जैसी हालत बन गई है
ये छत्ता है शहद की मक्खियों का
सभी के अपने घर हैं एक जैसे
हमारी छत पर उनका फर्श होता
रहा करता हूँ मैं औरों की छत पर
मुझे दिखता नहीं पर सुन रहा हूँ
किसी की फर्श पै चलने की आहट
कोई मेरी भी आहट सुनता होगा
नहीं रहता है मुझको ध्यान इसका
ये बिल्कुल जेल जैसी कोठरी है
सिपाही भी हम, कैदी भी हम हैं
खुद अपना ताला बन्द करते खोलते हैं
नहीं खोला मगर पर दिल का ताला
किसी का गम हो या घर में खुशी हो
मैं खट से अपनी खिड़की बन्द करता
लगा रक्खी है इक टीवी की खिड़की
जहाँ से सारी दुनिया देखता हूँ
हँसी भी है खुशी भी
उदासी भी है उसमें और गम हैं
उछलती कूदती प्यारी तितलियाँ
हज़ारों फूल जंगल पेड़ आते
इशारों पर लता जी गा रही हैं
कहीं शहनाई की धुन आ रही है
हुआ है हादसा लाशें बिछी हैं
मैं बैठा-बैठा खाना खा रहा हूँ
कहीं पर गोलियाँ चलने लगी हैं
इधर मैं जूतियाँ चमका रहा हूँ
मेरा घर मेरी बीबी मेरे बच्चे
सभी के अपने अपने बन्द कमरे
सभी के अपने गद्देदार बिस्तर
वहां मोबाइल से संवाद चलता
सभी की गोद में लैपटाप बैठा
लगे बच्चा नहीं यह बाप बैठा
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