Thursday, April 9, 2009

नैनो में माँ बाप समा ना पायेंगे

व्यंग्यजल

वीरेन्द्र जैन

इसमें केवल बीबी बच्चे आयेंगे
“नैनो” में माँ-बाप समा ना पायेंगे
दादाजी का रिशता, कोई रिशता है
वे पापा के पापाजी कहलायेंगे
माल विदेशी बिके स्वदेशी झख मारे
अंधे जब पीसेंगे कुत्ते खायेंगे
इतना बोझ न डालो कंधे झुक जायें
अपनी डोली फिर किससे उठवायेंगे
हमको केवल स्वागत गान नहीं आते
होली पर गाली भी हमीं सुनायेंगे


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

4 comments:

amritwani.com said...

महाशय जिकी आपने मेरे ब्लॉग को पड़ा और अपनी राय मुझे खुसी हे ! मगर में आप को सूचित कर देना चाहता हु की आप जो राशी श्री सांवलिया जी के यहाँ चढावे के लिए आती हे वो हर माह लाखो या कभी कभी करोडो में भी होती हे ! इस का स्थमाल धर्म के कामो में मंदीर निर्माण और जन हित के लिए किया जाता हे !




http://srisanwaliaji.blogspot.com/

शेखर कुमावत

हरकीरत ' हीर' said...

इतना बोझ न डालो कंधे झुक जायें
अपनी डोली फिर किससे उठवायेंगे
हमको केवल स्वागत गान नहीं आते
होली पर गाली भी हमीं सुनायेंगे

बहुत खूब....!!

वीरेन्द्र जैन said...

शेखर कुमार जी
ध्यान देने के लिए धन्यवाद किन्तु मेरा मतलब किसी मंदिर विशेष से नहीं था . मैं चाहता हूँ की जिस मंदिर की आमदनी लाखों और करोडों में हो और उसके ट्रस्टियों को भगवान पर भरोसा हो उन्हें साड़ी आमदनी को प्रत्येक वर्ष में योजना के अनुसार साडी आमदनी को खर्च कर देना चाहिए क्योंकि जोड़ता वही है फ्त्से भरोसा नहीं होता . दूसरी बात यह है कि मंदिरों में स्वच्छता व सुरक्षा बेहतर होना चाहिए व वाहन जाकर ही स्वर्गिक आनंद की अनुभूति हो

वीरेन्द्र जैन said...

हरिकीरत जी
आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद् ममें भी आपकी रचनाओं और टिप्पणियों का प्रशंसक हूँ . आखिर में किसी समय अमृता प्रीतम की रचनाओं का मुरीद रहा हूँ.