Thursday, June 18, 2009

कुछ व्यंग्य कवितायें


जब एक हट्टे कट्टे भिखारी ने मांगा आटा
तो अपनी कड़की छुपाने के बहाने
मैंने उसे बुरी तरह डांटा
पहले तो उसने सहा
फिर उत्तर में कहा
आपकी इस दशा पै हँसूं या रोऊं
आप तो ऐसे डंाट रहे हैं
जैसे में आटा नहीं वोट मांग रहा होऊं



घोड़े और घास का कैसा
अद्भुत सामंजस्य हुआ
अंधकार के अभिनन्दन में
सूरज का नेतृत्व हुआ




दोहे
धर्म,लाश,अभिनय,विनय, लाठी, लालच, दांव
जात-पांत,अनुदान इस लोकतंत्र के पांव

बोया पेड़ बबूल कर हर बस्ती हर गांव
आम भले ही ना फले,फलता आम चुनाव

आरक्षण से खा गये, नेता कई डिफीट
नगर वधू हथिया गयी, नगरपिता की सीट

रंग गंध सब चुनावी,मौसम के अनुकूल
असली से महकें अधिक कागज वाले फूल






जो तेरी मेरी दीवाली
वो बहुत अंधेरी दीवाली

मुंह हमने काला नहीं किया
कोोई घोटाला नहीं किया
रक्षासौदे,यू टी आई
प्रतिभूति हवाला नहीं किया
हर साल रही करती हमसे
कुछ हेरा फेरी दीवाली

अच्छा तुमको पहचान गये
असली सूरत सब जान गये
इस दीवाली से छेड़ेंगे
उजियारे के अभियान नये
अंधेर बहुत दिन नहीं भले
तू कर ले देरी दीवाली
जो तेरी मेरी दीवाली
वो बहुत अंधेरी दीवाली




सुबह सुबह
घूमने जाने वालों
और काम पर जाने वालों में
साफ अन्तर देखने को मिलते हैं
यद्यपि दोनाें ही
पेट की खातिर निकलते हंै







रिक्शेवाला
साला,लूटता है
स्टेशन से चौराहे के
छह रूपये मांगता है।

.....पर भाईसाहब
फिर भी उसके कपड़े फटे हेैं
उसके पांवों में जूते नहीं
उसके शरीर का क्या हाल हो रहा है
उसका चेहरा
जैसे कि पेड़ों की छाल हो रहा है
और आप.............
और आपकी मेमसाब.............
खैर जाने दीजिये
कौन किसको लूट रहा है
ये तो सूरतें बोल रही हैं



सूचना का तंत्र फैला
और फैला, और फैला,और फैला
-सूचनाएं पर न फैलीं गुम रही सच्चााइयां भी-
तंत्र पर छायीं बयानाें की घटायें
तंत्र पर विज्ञापनाें का जाल फैला
खूब नंगी देह के प्रतिविम्ब फैले
और मल्टीनेशनल का माल फैला

8 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत बढ़िया और सटीक व्यंग्य है आपकी कविता में !

M VERMA said...

घोड़े और घास का कैसा
अद्भुत सामंजस्य हुआ
अंधकार के अभिनन्दन में
सूरज का नेतृत्व हुआ
achchha vyang.

ओम आर्य said...

bahut hi sundar wyanga gathaa ...........bahut gahare lakeer khichate hai aap........aisa hi likhate rahe .....jisame sirf sachchaaee hai our sachchaee ko iena dikhana bahut jaruri hai

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुन्दर, पढ़ कर अच्छा लगा.

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं...लाजवाब...
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

एक साथ बहुत कुछ पढने को मिल गया।बहुत बढिया व्यंग्य और दोहे हैं।बधाई स्वीकारें।

dr amit jain said...

बहुत ही बढ़िया रूप से आप ने समाज के सुशासान के बारे मे ये लाइन लिखी है / मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए साथ मे मै आप को आमंत्ररित करता हु भड़ास ब्लॉग पर , जहा आज कल जैन धर्म पर अनूप मंडल अपशब्दों का खुल कर पर्योग कर रहा है और मै वहा उन का विरोध कर रहा हु , किर्पया जैन धर्म के बारे मे अपने विचारो से आप वहा अनूप मंडल को अवगत कराये , आप की पर्तीक्षा मे ....http://bharhaas.blogspot.com/

संजय भास्‍कर said...

जैन साहेब सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं...लाजवाब...