ं
जब एक हट्टे कट्टे भिखारी ने मांगा आटा
तो अपनी कड़की छुपाने के बहाने
मैंने उसे बुरी तरह डांटा
पहले तो उसने सहा
फिर उत्तर में कहा
आपकी इस दशा पै हँसूं या रोऊं
आप तो ऐसे डंाट रहे हैं
जैसे में आटा नहीं वोट मांग रहा होऊं
ं
घोड़े और घास का कैसा
अद्भुत सामंजस्य हुआ
अंधकार के अभिनन्दन में
सूरज का नेतृत्व हुआ
ं
दोहे
धर्म,लाश,अभिनय,विनय, लाठी, लालच, दांव
जात-पांत,अनुदान इस लोकतंत्र के पांव
बोया पेड़ बबूल कर हर बस्ती हर गांव
आम भले ही ना फले,फलता आम चुनाव
आरक्षण से खा गये, नेता कई डिफीट
नगर वधू हथिया गयी, नगरपिता की सीट
रंग गंध सब चुनावी,मौसम के अनुकूल
असली से महकें अधिक कागज वाले फूल
ं
जो तेरी मेरी दीवाली
वो बहुत अंधेरी दीवाली
मुंह हमने काला नहीं किया
कोोई घोटाला नहीं किया
रक्षासौदे,यू टी आई
प्रतिभूति हवाला नहीं किया
हर साल रही करती हमसे
कुछ हेरा फेरी दीवाली
अच्छा तुमको पहचान गये
असली सूरत सब जान गये
इस दीवाली से छेड़ेंगे
उजियारे के अभियान नये
अंधेर बहुत दिन नहीं भले
तू कर ले देरी दीवाली
जो तेरी मेरी दीवाली
वो बहुत अंधेरी दीवाली
ं
सुबह सुबह
घूमने जाने वालों
और काम पर जाने वालों में
साफ अन्तर देखने को मिलते हैं
यद्यपि दोनाें ही
पेट की खातिर निकलते हंै
ं
रिक्शेवाला
साला,लूटता है
स्टेशन से चौराहे के
छह रूपये मांगता है।
.....पर भाईसाहब
फिर भी उसके कपड़े फटे हेैं
उसके पांवों में जूते नहीं
उसके शरीर का क्या हाल हो रहा है
उसका चेहरा
जैसे कि पेड़ों की छाल हो रहा है
और आप.............
और आपकी मेमसाब.............
खैर जाने दीजिये
कौन किसको लूट रहा है
ये तो सूरतें बोल रही हैं
ं
सूचना का तंत्र फैला
और फैला, और फैला,और फैला
-सूचनाएं पर न फैलीं गुम रही सच्चााइयां भी-
तंत्र पर छायीं बयानाें की घटायें
तंत्र पर विज्ञापनाें का जाल फैला
खूब नंगी देह के प्रतिविम्ब फैले
और मल्टीनेशनल का माल फैला
8 comments:
बहुत बढ़िया और सटीक व्यंग्य है आपकी कविता में !
घोड़े और घास का कैसा
अद्भुत सामंजस्य हुआ
अंधकार के अभिनन्दन में
सूरज का नेतृत्व हुआ
achchha vyang.
bahut hi sundar wyanga gathaa ...........bahut gahare lakeer khichate hai aap........aisa hi likhate rahe .....jisame sirf sachchaaee hai our sachchaee ko iena dikhana bahut jaruri hai
बहुत सुन्दर, पढ़ कर अच्छा लगा.
जैन साहेब सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं...लाजवाब...
नीरज
एक साथ बहुत कुछ पढने को मिल गया।बहुत बढिया व्यंग्य और दोहे हैं।बधाई स्वीकारें।
बहुत ही बढ़िया रूप से आप ने समाज के सुशासान के बारे मे ये लाइन लिखी है / मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए साथ मे मै आप को आमंत्ररित करता हु भड़ास ब्लॉग पर , जहा आज कल जैन धर्म पर अनूप मंडल अपशब्दों का खुल कर पर्योग कर रहा है और मै वहा उन का विरोध कर रहा हु , किर्पया जैन धर्म के बारे मे अपने विचारो से आप वहा अनूप मंडल को अवगत कराये , आप की पर्तीक्षा मे ....http://bharhaas.blogspot.com/
जैन साहेब सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं...लाजवाब...
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