व्यंग्य ग़ज़ल
जब तक खुदा सलामत चाचा
इंसानों की आफत चाचा
मुल्ला मरे पादरी मरता
मरता ग्रंथी पंडित चाचा
पाँचों वक्त नमाजें पूजन
फ़िर भी नहीं हिफाज़त चाचा
वे भी ज़र ज़मीन मालिक
जो रब से रखें अदावत चाचा
जो रहता ख़ुद डरा छुपा सा
भेजो उसको लानत चाचा
सहते सहते उमर बीत गई
अब तो करो बगावत चाचा
2 comments:
Ultimate...bahut badhiya..
शानदार!
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