Thursday, May 20, 2010

व्यंग्य कविता- गोत्र तो नहीं मिलता

एक अगोत्र प्रेमी का शपथ पत्र
वीरेन्द्र जैन

प्रिये,
तुम कितनी सुन्दर हो,
तुम्हारा रंग,
जैसे कि चाँदनी को मिल जाये
ऊषा का संग
और हमारा गोत्र भी नहीं मिलता
तुम्हारा रूप
जैसे कि तराशा हो तुम्हें
किसी कुशल कलाकार ने
और हमारा गोत्र भी नहीं मिलता
द्वापर में जिन गोपिकाओं से
रास रचाते थे उस युग के नायक
वे जाँच लेते होंगे कि कहीं
उन से गोत्र तो नहीं मिलता
ठीक उसी तरह मैंने भी जाँच लिया है
हमारा गोत्र नहीं मिलता
मैं बेरोज़गार हूं तो क्या हुआ
हमारा गोत्र तो नहीं मिलता
तुम मुझ से ज्यादा पढी हो
और हैसियत में भी बड़ी हो
पर हमारा गोत्र तो नहीं मिलता
पता नहीं ये फिल्म और सीरियल वाले
कहानियों में इतने इतने पेंच कहाँ से लाते हैं
पर ये क्यों नहीं देख पाते हैं कि
गोत्र तो नहीं मिलता
युवाओं के सामने
दुनिया में एक ही समस्या है
गोत्र तो नहीं मिलता
मेरे घर में शौचालय नहीं है
नहीं है गाँव में स्कूल
अस्पताल है बारह किलोमीटर दूर
एक समय खा पाता हूं में खाना
पर आज तक इस समस्या को
किसी पंच ने नहीं जाना
उन्हें सताती है केवल एक ही चिंता
कि शादी करने वाले लड़के लड़की का
गोत्र तो नहीं मिलता


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

5 comments:

Rajeev Bharol said...

बहुत अच्छा तीखा व्यंग्य.

दिलीप said...

waah bada hi jordaar vyangya

प्रदीप कांत said...

सच्मुच
गोत्र तो नहीं मिलता.......

Rajendra jangid said...

ए वीरेंद्र जैन.
सठिया गया है तू इस लिए तेरे को एक भी बात समझ मे नही आती है. हर एक लेख मैं तुझे तेरी माइनो मेडम के खिलाफ साजिश की बू आती है.. तेरे को पहले भी मैं एक राय दे चुका हूँ की अब तेरी उमर चमचगिरी "कराछगिरी" करने की नही रही. जा के तीर्थ कर तेरा भूढ़ापा सफल होगा. और गगर कुछ नही कर सकता तो प्लीज़ अपनी चोंच बंद रखा कर.
तुम जैसे "जयचंदों" ने इश्स देश ने ही इस देश की लुटिया डुबाइ है. तेरे से एक निवेदन है ली तू उस ब्लॉग परBlog.sureshchiplunkar.com कुछ भी जला हुआ मत लिखना क्यूंकी ये हिंदुओं का हिन्दुतव वादियों का ब्लॉग है. (मैने वहाँ पर तेरे लिए टिप्पणी लिखी है पढ़ लेना)

हिंदुत्व और राष्ट्रवाद said...

Virendraji,

Hamesha Kavita hi karoge ya kabhi HINDUON ki baate bhi karoge mahashay.

Bade bade lekhko ne veer ras kavitaye ki hai, aap to wo bhi nahi karate jis se josh aa jaye.
Ulta aapki kavita sun ke josh mar jata hai.