व्यंग्य कविता
एक जानवर और आ गया उनके बाड़े में
वीरेन्द्र जैन
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मूंछ एंठते पहलवान फिर रहे अखाड़े में
एक जानवर और आ गया उनके
बाड़े में
दण्ड बैठकें कर बाहों
को तेल पिलाया है
जितना मिल सकता था माल मुफ्त का खाया
है
सेठों की चौकीदारी करते हैं भाड़े में
एक जानवर और आ गया उनके
बाड़े में
पिंजरे में फंसते जाते
हैं उल्लू के पट्ठे
एक यात्री को
अंगूर हुये फिर से खट्टे
हींड़ रहा था पड़े पड़े जो किसी कबाड़े में
वही जानवर आज आ गया उनके बाड़े में
उद्घोषक फिर फिर बोला दे चोट नगाड़े में
एक जानवर और आ
गया उनके बाड़े में
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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