Wednesday, October 7, 2009

व्यंग्यजल - पास आई दिवाली

पास आयी दिवाली
वीरेन्द्र जैन

घर में उगी है घास पास आई दिवाली
सब हो रहे उदास पास आई दिवाली
लक्ष्मी की ओर इस प्रकार घूरतीं मिलीं
जैसे खड़ी हो सास पास आई दिवाली
बत्ती बना के दीये में डालेंगे डिग्रियाँ
एम.ए ओ, बीए पास, पास आई दिवाली
अपना भी अगर होता तो सीधा उसे करते
कोई उलूकदास पास आई दिवाली
सपनों से और यादों से फेंटे ही जा रहे
हम जिन्दगी की ताश पास आई दिवाली

1 comment:

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत बढ़िया..दीवाली हर एक के लिए अलग अलग मायने लेकर आया..बढ़िया व्यंग..बधाई!!!