व्यंग्जल
भूत प्रेतों को भज रही दुनिया
भूत प्रेतों को भज रही दुनिया
आदमी से उलझ रही दुनिया
हम भी गृह लक्ष्मी को ढोते हैं
हम को उल्लू समझ रही दुनिया
ऐसे आभुषणों के फैशन हैं
बम मिसाइल से सज़ रही दुनिया
उसकी ज़ुल्फों से होड लेती है
जाने कब से सुलझ रही दुनिया
कोई ज्वालामुखी नहीं फटता
भीतर भीतर से बुझ रही दुनिया
2 comments:
भूत प्रेतों को भज रही दुनिया
आदमी से उलझ रही दुनिया
वाह.....!!
व्यंग लिखना भी एक कला है ...सब के बस की बात नहीं ये .....!!
उल्लू समझना भी एक कला
उल्लुओं को भी नहीं समझती दुनिया।
चाहिए लक्ष्मी जिसको घर में
उल्लू से प्रीत बढ़ाइये सुबहो शाम।
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