व्यंग्यजल
वीरेन्द्र जैन
बिल्लियों ने रास्ते काटे बहुत
हुये होंगे उन्हीं के घाटे बहुत
गाल पर बच्चे के जब बोसा लिया
खाये अपने गाल पर चांटे बहुत
वो मिलन की रात आंखों में कटी
यार को आये थे खर्राटे बहुत
जब से उनके हुश्न को कांटा कहा
मेरी राहों में बिछे कांटे बहुत
लौट आओ ये सुकूने ज़िन्दगी
शोर करते हैं ये सन्नाटे बहुत
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