Thursday, November 19, 2009

व्यंग्य गीत -

लेकिन तेरा नाम नहीं है
वीरेन्द्र जैन्
तख्त वही है ताज वही है
गीत वही है साज़ वही है
अब तक सूरज चाँद वही है
लेकिन तेरा नाम नहीं है
अब तक लूटमार वैसी की वैसी होती है
लेकिन जनता और किसी के नाम को रोती है
देश वही है राज वही है
शोषण भरा समाज वही है
अब तक सूरज चाँद वही है
लेकिन तेरा नाम नहीं है
भूल गये जो कभी उठाते थे तेरे जूते
कौन जिया है इतिहासों में चमचों के बूते
चील वही है बाज़ वही है
कोढ वही है खाज़ वही है
अब तक सूरज चाँद वही है
लेकिन तेरा नाम नहीं है
अब भी वही गरीबी अपना वंश बढाती है
अब भी पूंजी फूल फूल कर अंश बढाती है
सब जनता नाराज वही है
नेता धोखेबाज़ वही है
अब तक सूरज चाँद वही है
लेकिन तेरा नाम नहीं है