Monday, December 14, 2009

दो व्यंग्य कविताएं

दो व्यंग्य कवितायें
वीरेन्द्र जैन
1.
जी हाँ मैं भोपाल से ही बोल रहा हूँ
जी हाँ मैं पूरे होशो हवाश में कह रहा हूं
कि नहीं रिसी कोई गैस इन दिनों
पर पता नहीं ये सारे लोग एक ही दिशा में
क्यों भाग रहे हैं
हो सकता है कि वहाँ साहित्य संस्कृति के पुरस्कारों
के लिये आवेदन मांगे गये हों
2.
मैंने नहीं तोड़ी बाबरी मस्ज़िद
और मैं यह कह कर
केवल अपना धर्म तोड़ रहा हूं
जिसमें पहला सन्देश है
सदा सच बोलो
.

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व सामयिक व्यंग्य रचनाएं है। बधाई।

ab inconvenienti said...

मैंने नहीं तोड़ी बाबरी मस्ज़िद
और मैं यह कह कर
केवल अपना धर्म तोड़ रहा हूं
जिसमें पहला सन्देश है
सदा सच बोलो
.......
.......
पर ढहना ही था उसे
क्योंकि एक आक्रान्ता ने
उसे ऐसी जह्गाह बनाया
जो मानी जाती है हिन्दुओं का तीर्थ
जहाँ जन्म लिया राम ने
जिसकी वाही कीमत है हमारे लिए
जैसे काबा हो मुसलमा के लिए
या जेरुसलम हो ईसाई-यहूदी के लिए
यह भी उतना ही बड़ा सच है