Sunday, February 21, 2010

दो होली की कवितायें



दो होली की कवितायें
1- उन पर रंग लगाऊं कैसे
जिन मुख कालिख मली हुयी है
उन पर रंग लगाऊं कैसे?
उजली खादी वाले निकले
चोर, उचक्के, पापी, बगुले
भगवा भेष किया है धारण
उसमें छुपे हुये हैं रावण
जनता बहुत सरल सीता सी
निर्वासित होकर वनवासी
लव कुश भक्त ''माइकिल'' के हैं
जनसंघर्ष सिखाऊं कैसे
जिन मुख कालिख मली हुयी है
उन पर रंग लगाऊं कैसे?


2-होली की डोली

फिर हथेली खुजाय है भाई
आय का क्या उपाय है भाई
कोई पूछे न सेव गुझिया को
हर जगह चाय चाय है भाई
पाइप लाइन से नहीं ड्रापर से
आजकल जलप्रदाय है भाई
अपनी संसद से भी कहीं ज्यादा
अपने घर काँय काँय है भाई
ऐसी मँहगाई है सरकार कि बस
हर तरफ हाय हाय है भाई
वो गये जब से छोड़ कर इसको
सारा घर साँय साँय है भाई
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

2 comments:

Udan Tashtari said...

दोनों रचना बढ़िया....होली का रंग आ रहा है.

Randhir Singh Suman said...

भगवा भेष किया है धारण
उसमें छुपे हुये हैं रावण.nice