Friday, April 9, 2010

कविता- आँखन देखी- कागद लेखी

आँखन देखी- कागद लेखी
[क्रांति हमारी रही कागज़ों पर]
वीरेन्द्र जैन

उतरा है आकाश कागजों पर
पतझर ओ’ मधुमास कागजों पर
कागज़ के नक्शे पर देश बना
करते रहे विकास कागजों पर
निकली सभी भड़ास कागजों पर
होते रहे प्रयास कागजों पर
वे सबके सब आतंकी घोषित
जो न करें विश्वास कागजों पर

सब सामाजिक न्याय कागजों पर
बँटतीं भैंसें, गाय कागजों पर
पाँच साल में अँगड़ाई लेकर
दे आते हैं राय कागजों पर
जाँचों की अन्धी अनंत गलियाँ
टलती रही बलाय कागजों पर
अत्याचारी खुल कर खेल रहे
होता भी तो न्याय कागजों पर

मिल जाते अनुदान कागजों पर
खुल जाती दूकान कागजों पर
सब मन के मजमून कागजों पर
बन जाते कानून कागजों पर
मैच देखते बंगले पर अफसर
गये देहरादून कागजों पर

हमने मन की कही कागजों पर
क्रांति हमारी रही कागज़ों पर
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

kunwarji's said...

ji aapki ye rachna badhiya hai...

kunwar ji,