Thursday, October 14, 2010

व्यंग्य कविता- अस्पताल में नाक का इलाज


व्यंग्य
प्राईवेट अस्पताल में नाक का इलाज
वीरेन्द्र जैन्
पिता को प्राईवेट अस्पताल के स्पेशल वार्ड में रखना
उनके स्वास्थ सुधार से ज्यादा
बेटे की इज्जत का सवाल था
देखने आने वाले रिश्तेदारों में
ऊंची होती थी उनकी नाक
जाते जाते कन्धे पर हाथ रख
वे शाबाशी देते हुए कहते
बहुत कुछ कर रहे हो तुम अपने पिता के लिए
प्राईवेट अस्पताल में पिता मँहगे इलाज और कर्मचारियों की सेवा से
मरने के बाद भी चार घंटे अधिक जिये
आईसीयू में कैद कर उनकी लाश को
लगायी बतायी गयी आक्सीजन
जिसके पैसे पहले ही जमा करा लिए गये थे
बताया जाता रहा कि डाक्टर कोशिश कर रहे हैं
वे जानते थे कि ये
अपने पिता से अधिक
अपनी नाक बचाने आये हैं जिसके लिए वसूला जा सकता है भरपूर।

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