सिंहासन खाली करो उमाजी आती हैं
[रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति से क्षमायाचना सहित]
वीरेन्द्र जैन
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भोपाली ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी
गेरुआ वस्त्र की आग दहकती जाती है
दो राह काल के रथ को ये मामा लोगो
सिंहासन खाली करो उमाजी आती हैं
जो चट्टानों की तरह गौर के पीछे थीं
वे उसी गौर के पीछे पड़ीं हाथ धोकर
वे गोकुलग्राम भूल कर गये द्वारिका को
जैसे कोई सपना भूले उठके सोकर
ये वही उमाजी हैं जिनने तब सरे आम
उस ‘लौह पुरुष’ को कुत्ते सा दुत्कारा था
अब वही हिलाकर पूँछ खड़ा स्वागत करने
जिसकी इज़्ज़त पर उनने डंडा मारा था
जब भी उनका मन हुआ गयीं केदारनाथ
जब भी उनका मन हुआ तिरंगा ले निकलीं
जब चाहा राम और रोटी से खेल किया
जब चाहा भूल गयीं बातें अगली पिछलीं
भगवान हमारी नैय्या पार लगा देना
ये गीत आज भी पूरे हक़ से गाती हैं
दो राह काल के रथ को ये मामा लोगो
सिंहासन खाली करो उमाजी आती हैं
हैं काँप रहीं अब रोज नायडू की टाँगें
सुषमा स्वाराज सोचें ऐसी क्या जल्दी थी
अब अरुण जैटली पेट पकड़ कर बैठे हैं
एलिस इन वंडरलैंड हुये हम्पी डंपी
जब से आयी है लिब्राहन वाली रिपोर्ट
तब से गोला इक रोज़ पेट में उठता था
कल्याण, पता न जाने क्या कल्याण करें
डर के मारे सीने मैं क्या क्या घुटता था
आ रहीं साध्वी अब तो ‘सच सच’ बोलेंगीं
अब बरी होएंगे सब के सब बाइज़्ज़त से
जो टूट गई मस्ज़िद अब उसका गम भूले
फिर से अध्यक्ष माँगेंगे चन्दे डालर के
जो लौटा करता है वह घर ही लौटा है
अब सारी पिछली बातें भूली जाती हैं
दो राह काल के रथ को ये मामा लोगो
सिंहासन खाली करो उमाजी आती हैं
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
3 comments:
बेहतरीन!
सुन्दर रचना!
यह चर्चा मे भी लगी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html
good
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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