अब तो बाहर है अपने बूते से
बात होने लगी है जूते से
घूमते फिर रहे हैं आवारा
साँड़ जो बँध रहे थे खूँटे से
एकता की दुहाई के दाता
खुद नजर आ रहे हैं टूटे से
ये मदारी भी खूब हैं यारो
पूछते कुछ नहीं जमूरे से
कितने बारह बरस हुये प्यारे
घूरे अब भी लगे हैं घूरे से
2 comments:
बहुत सटीक!
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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